करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है घटा उमडी है बिजली ने चमक अपनी दिखाई है अगर झूले तू मेरे दिल के झूले में तो ऐ ज़ालिम रग-ए-जाँ से तिरे झूले को मैं रस्सी बनाई है यहाँ अब्र-ए-सियह में आज तेरे सुर्ख़ जोड़े ने मुझे शाम ओ शफ़क़ दस्त-ओ-गरेबाँ कर दिखाई है इधर है किर्मक-ए-शब-ताब उधर जुगनू गले का है ये आलम देख कर ये बात मेरे जी में आई है ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-'हातिम' 'निसार' उस वक़्त यूँ कहिए तिरी क़ुदरत के सदक़े क्या तमाशे की ख़ुदाई है