करूँ जो तन्क़ीद ज़ुल्मतों पर तो आएगा हर्फ़ हिक़मतों पर फ़ुतूर-ए-मिल्लत जुनून-ए-मज़हब ये रक़्स करते हैं वहशतों पर शुऊ'र-ए-इंसान पल रहा है ख़ुदा की बस्ती में नफ़रतों पर ये साज़िशों के मुहीब साए हैं छाए सदियों से उल्फ़तों पर ये रक़्स कैसा है जान-ओ-तन में हूँ महव-ए-हैरत मोहब्बतों पर महक उठी हैं फ़ज़ाएँ सारी है कैसी बरसात पर्बतों पर 'शफ़क़' बहाया न इक भी आँसू दिलों पे टूटी क़यामतों पर