क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है ये ज़मीं इक आइना है ये नगर इक ख़्वाब है तंगी-ए-औक़ात से खुलती है इक राह-ए-नजात वुसअत-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा से उधर इक ख़्वाब है एक सुब्ह-ए-नूर है मेरे सितारे की नियाम और मिरी बे-तेग़ आँखों की सिपर इक ख़्वाब है ये ज़मीन-ओ-आसमाँ दोनों हक़ीक़त हैं मगर ख़ाक पर मौजूद होने की ख़बर इक ख़्वाब है साँस रुकता है तो गुल होती है शम्-ए-जुस्तुजू रात भर बेदार रहने का समर इक ख़्वाब है एक मौज-ए-आब है इक अक्स में लिपटी हुई एक मौज-ए-रंग से शीर-ओ-शकर इक ख़्वाब है