कासा-ए-दस्त-ए-दुआ कौन भरे इस क़दर ज़ख़्म खुला कौन भरे ध्यान से चलता हूँ थामे दिल को टूट जाने पे ख़ुदा कौन भरे काम सारे ही पड़े हैं घर के आह भी मेरे सिवा कौन भरे कौन समझाए मुझे अच्छा-बुरा हो जो पहले ही भरा कौन भरे कोई जब मुँह न लगाए दिल को इस ग़ुबारे में हवा कौन भरे