काश पड़ते न इन अज़ाबों में ढूँडते हैं तुम्हें सराबों में कभी काँटों कभी गुलाबों में खो गए हम ये किन अज़ाबों में नश्शा-ए-यार का नशा मत पूछ ऐसी मस्ती कहाँ शराबों में उस का जल्वा दिखाई देता है सारे चेहरों पे सब किताबों में सामने हों तो आँख खुलती नहीं जागते हैं हम उन के ख़्वाबों में