कशाकश-ए-ग़म-ए-हस्ती में कोई क्या सुनता हमीं तक आ न सकी दिल के टूटने की सदा हर एक फूल के चेहरे पे गर्द जमने लगी कहीं से आज ऐ अब्र-ए-बहार झूम के आ चले थे जिस के भरोसे पे रहरवान-ए-बहार वो माहताब सर-ए-दश्त पिछली शब निकला कहीं सदा-ए-जरस है न गर्द-ए-राह-ए-सफ़र ठहर गया है कहाँ क़ाफ़िला तमन्ना का हुजूम-ए-लाला-ओ-गुल रास्ते से हट जाए तलाश-ए-ख़ार में निकला है कोई आबला-पा गुज़र के आया हूँ उन सख़्त मंज़िलों से जहाँ तुम्हारी याद का साया भी आस-पास न था कहीं से कोई पुकारे कि आज फिर 'शाहीन' दिलों को डसने लगा है दिलों का सन्नाटा