कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा मैं प्यास बाँटता हूँ ज़रूरत नहीं तो जा मैं शहर शहर ख़्वाबों की गठरी लिए फिरा बे-दाम था ये माल पे गाहक कोई न था पत्थर पिघल के रेत के मानिंद नर्म है दर्द इतनी देर साथ रहा रास आ गया सीनों में इज़्तिराब है गिर्या हवा में है क्या वक़्त है कि शोर मचा है दुआ दुआ हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम चुप बैठने से हल नहीं होने का मसअला वाँ शब-गज़ीदा सीनों को सूरज अता हुए तुम भी वहाँ गए थे 'ज़िया' तुम को क्या मिला