कश्मकश में हैं तिरी ज़ुल्फ़ों के ज़िंदानी हनूज़ तीरगी पैहम है ख़म-दर-ख़म परेशानी हनूज़ रखते हैं हम मक़सद-ए-तामीर-ए-नौ पेश-ए-नज़र गरचे हैं मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी हनूज़ सत्ह-ए-दरिया पर सुकूँ सा है मगर ऐ सत्ह-बीं क़अ'र-ओ-दरिया में वही मौजें हैं तूफ़ानी हनूज़ अब जुनूँ में भी नहीं आता है सहरा का ख़याल शहर-ए-हिकमत में है वहशत-ख़ेज़ वीरानी हनूज़ पुर्सिश-ए-अहल-ए-क़लम हो या न हो होती तो है संग-ए-मरमर के मज़ारों पर गुल-अफ़्शानी हनूज़ हम ने रख दी क़ालिब-ए-अशआ'र में चीज़-ए-दिगर तुम नहीं कर पाए तकमील-ए-ज़बाँ-दानी हनूज़ 'अश्क' उसूल-ए-कस्ब-ए-ज़र से तू नहीं है आश्ना तिश्ना-ए-तकमील है तेरी हमा-दानी हनूज़