कश्ती-ए-ग़म का नाख़ुदा न रहा कोई हमदर्द हम-नवा न रहा जाम-ओ-साग़र वो मै-कदा न रहा बा'द तेरे वो सिलसिला न रहा हो के मेरा जो तू मिरा न रहा फिर किसी से मुझे गिला न रहा यूँ गया रूठ कर कोई मुझ से फिर मनाने का हौसला न रहा क्या ख़िज़ाँ से रखें अदावत हम जब बहारों से वास्ता न रहा तुझ से टकरा के ऐ ग़म-ए-जानाँ याद कोई भी हादिसा न रहा लड़खड़ाता है दम जो सीने में ये भी कल तक रहा रहा न रहा