कश्तियों से उतर न जाएँ कहीं लोग तूफ़ान से डर न जाएँ कहीं ज़िंदगी है कि आग का दरिया शिद्दत-ए-ग़म से मर न जाएँ कहीं जिन को ज़ुल्मत ने बाँध रखा है चाँदनी में बिखर न जाएँ कहीं रोक अश्कों को अब सर-ए-मिज़्गाँ ये भी हद से गुज़र न जाएँ कहीं आओ लिख लें लहू से अहद-ए-वफ़ा क़ौल से हम मुकर न जाएँ कहीं उन की यादों के ज़ख़्म ऐ 'आलम' वक़्त से पहले भर न जाएँ कहीं