क़ासिद को दे न ऐ दिल उस गुल-बदन की पाती चल ख़ुद ही ले चलें हम अपने सजन की पाती हर सत्र मौज-ए-शीरीं इक मुद्दआ रखे है टुक देख जू-ए-पुर-ख़ूँ है कोहकन की पाती काग़ज़ हरी ज़मीं का नहीं देखता कि शायद पहुँचे न इस हुनर से उस को हमन की पाती मुंफ़ज़ निगह का आँसू घेरे ही लें हैं प्यारे बाँचूँ सो किस तरह से अब में तुमहन की पाती आवारा दाग़-ए-दिल हैं नाले से यूँ कि जैसे बाद-ए-ख़िज़ाँ से दिरहम होवे चमन की पाती 'क़ाएम' लिखा था उस ने आने का शब को वादा सो दिन में देखी सौ दम उस सीम-तन की पाती