क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो मतलब ये है कि बात न हो और कलाम हो बाक़ी है शौक़ राह में क्यूँकर क़याम हो हाथ आएँ उन के पाँव तो मंज़िल तमाम हो क्या ख़ुश हो दिल कि है वो जफ़ा-जू ज़मीं से दूर तुम कैसे आसमान के क़ाएम-मक़ाम हो फ़रमाँ-रवा-ए-हुस्न को होता नहीं फ़रोग़ जब तक न इश्क़ उस का मुदारुलमहाम हो 'अहसन' वो सुन के शिकवा-ए-तशहीर कह गए हम जानते हैं तुम को बड़े नेक-नाम हो