कट न पाए ये फ़ासले भी अगर और उस पर ये राब्ते भी अगर जो तुम्हारी तरफ़ नहीं खुलते बंद निकले वो रास्ते भी अगर ख़ैर हो तेरी बे-नियाज़ी की अब नहीं ख़ुद-परस्त थे भी अगर क्या करेंगे सिवाए ख़्वाहिश के मोहलत-ए-यक-नफ़्स मिले भी अगर उम्र भर के ज़ियाँ का मोल नहीं चंद लम्हे चुरा लिए भी अगर ख़ूँ-बहा कौन देगा जज़्बों का ब'अद मरने के जी उठे भी अगर कौन समझेगा इस्तिआरों को कुछ न बोलेंगे हाशिए भी अगर