काँटे को फूल संग को गौहर कहा गया इस शहर में गदा को सिकंदर कहा गया बे-चेहरा लोग हुस्न का मेआ'र बन गए परछाइयों को नूर का पैकर कहा गया जल्लाद को मसीहा-नफ़स की सनद मिली इंसान-दुश्मनों को पयम्बर कहा गया कुछ जिस के पास नीश-ओ-नमक के सिवा न था चाक-ए-जिगर का उस को रफ़ू-गर कहा गया क्या शय है मस्लहत भी शब-ए-तीरा-फ़ाम को दानिशवरों में सुब्ह-ए-मुनव्वर कहा गया गूँगा है कर रहा है इशारों में बात-चीत 'साबिर' को किस बिना पे सुख़नवर कहा गया