कटती है कोई दम यहीं औक़ात मज़े की दुनिया में अजब जा है ख़राबात मज़े की कहता है मुबारक कोई कहता है सलामत है रूठ के मिलना भी मुलाक़ात मज़े की आगे तो ये चुप-चाप का मज़कूर नहीं था होती थी कई ढब से इनायात मज़े की बूमा है न गाली है न चश्मक-ज़दनी है क्या है जो नहीं आज इशारात मज़े की होने दे ख़याल उस का 'निसार' और तरफ़ टुक बोसे की लगा रक्खी है मैं घात मज़े की