कौन दिल है मिरे अल्लाह जो नाशाद नहीं कौन घर है मिरे अल्लाह जो बर्बाद नहीं नाज़नीं जान भी लें तो कोई बेदाद नहीं चूड़ियाँ हाथ में हैं ख़ंजर-ए-फ़ौलाद नहीं ऐ नसीम-ए-सहरी साथ लिए जा सू-ए-बाम नफ़स-ए-रद्द है नाला नहीं फ़रियाद नहीं सब्ज़-बाग़ आप दिखाएँ न अब आज़ादी के आप के बाग़ में तो सर्व भी आज़ाद नहीं चुप से हैं कुछ मिरे आग़ोश में वो हश्र के दिन ये वही हैं जिन्हें पैमान-ए-वफ़ा याद नहीं देखते रंग-ए-हिना जाते हैं मक़्तल की तरफ़ हाथ में तेग़ नहीं ख़ंजर-ए-फ़ौलाद नहीं है तिरी जेब पर आज आँख नशेमन के एवज़ बाग़बाँ ये तो कोई चोर है सय्याद नहीं शोर-ए-क़ुलक़ुल में गुम आवाज़-ए-अज़ाँ है ऐ शैख़ ये बहुत ख़ूब कही मय-कदा आबाद नहीं एक इक फूल को एक एक कली को देखा हार में उन के हमारा दिल-ए-नाशाद नहीं निकली हैं हश्र में दुनिया की पुरानी बातें मैं तो क्या मेरे फ़रिश्तों को भी अब याद नहीं न गिरी बर्क़ मगर आप गिरे ग़श खा कर ये तो ए हज़रत-ए-मूसा कोई उफ़्ताद नहीं जिस से आता था नशेमन का क़फ़स में कुछ लुत्फ़ तेरे क़ुर्बान तिरी आँख वो सय्याद नहीं दिल से निकली है ये दिल ही में रहेगी ज़ालिम जा के दीवार से टकराए वो फ़रियाद नहीं काम करता था जो ऐ चर्ख़ तिरे पर्दे में वो नहीं काम में तो लज़्ज़त-ए-बेदाद नहीं ये बहुत है रहे दिल पर जो हुकूमत क़ाएम आज क़ब्ज़े में अगर बसरा-ओ-बग़दाद नहीं बू-ए-ख़ूँ देते हैं शीरीं तिरे मेहंदी लगे हाथ हाथ में लाले के ख़ून-ए-सर-ए-फ़रहाद नहीं हद से आगे न बढ़े देखिए मिज़गान-ए-दराज़ छेड़ने के लिए कम नश्तर-ए-फ़स्साद नहीं शोअ'रा आप को भी ख़ूब बनाते हैं 'रियाज़' सब ये कहते हैं कोई आप सा उस्ताद नहीं