कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं नाम लूँ किस किस का मुझ को एक बीमारी नहीं आग कितनी ले के निकला था मिरा दूद-ए-जिगर वो फ़ज़ा है कौन जिस में कोई चिंगारी नहीं यास से क्यूँ देखते हैं दोस्त ऐ आज़ार-ए-दिल पूछते हैं क्या मुझे तो कोई बीमारी नहीं हाथ रख कर इक ज़रा देखो तप-ए-ग़म का असर ये तुम्हारा ही जलाया दिल है चिंगारी नहीं दिल ने रग रग से छुपा रक्खा है तेरा राज़-ए-इश्क़ जिस को कह दे नब्ज़ ऐसी मेरी बीमारी नहीं क़ैद हो कर मैं ने खोली हम-सफ़ीरों की ज़बाँ किस गुलिस्ताँ में मिरा ज़िक्र-ए-गिरफ़्तारी नहीं