कौन कह सकता है अब उन को ख़ता के धब्बे उजली पोशाक में फिरते हैं नहा के धब्बे अब भी करता हूँ वो मख़मल सी हथेली महसूस अब भी मौजूद हैं दामन पे हिना के धब्बे ग़म के सहरा से निकल आए थे शायद कुछ लोग कितने चेहरों पे नज़र आए हवा के धब्बे इस तरह लोग तो पहचान लिए जाते कुछ काश माथों पे उभर आएँ दग़ा के धब्बे रोग बाक़ी न रहा मर गए रोगी भी सब रह गए आज भी दामन पे दवा के धब्बे इस लिए अपनी ख़ता देख न पाए तुम भी दिल के शीशे पे थे 'अफ़रोज़' अना के धब्बे