कौन कहता है बढ़ा शौक़ इधर से पहले किस ने देखा था किसे तिरछी नज़र से पहले मुतमइन हो ले ज़रा अहल-ए-नज़र से पहले पर्दे आँखों के उठा पर्दा-ए-दर से पहले अभी तालीम-ए-वफ़ा यानी जफ़ा का नहीं वक़्त तर्बियत शौक़ की हो लुत्फ़-ए-नज़र से पहले हाँ मोहब्बत में मज़ा है मुझे इंकार नहीं मगर ऐ ज़ौक़-ए-ख़लिश दर्द-ए-जिगर से पहले सालिक-ए-राह-ए-वफ़ा है दिल-ए-आशुफ़्ता-मिज़ाज मुज़्दा-ए-गुमरही-ए-शौक़-ए-सफ़र से पहले जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना पे ख़फ़ा हो लेना मुस्कुराओ तो ज़रा नीची नज़र से पहले मौसम-ए-कैफ़ में बे-कैफ़ी-ए-जज़्बात न पूछ दिल-ए-बुलबुल है फ़सुर्दा गुल-ए-तर से पहले जुम्बिश-ए-मुज़्तरिब-ए-पर्दा-ए-इस्मत की क़सम जल्वे बेताब हुए ज़ौक़-ए-नज़र से पहले जिन से बदनाम हुए इश्क़ के जज़्बात-ए-लतीफ़ वो इशारे थे इधर से कि उधर से पहले दो इरादों में जो हाइल थे हया के पर्दे किस ने सरकाए इशारात-ए-नज़र से पहले क्यूँ कोई पहलू-ए-जानाँ में जगह पाए 'जमील' आज हम बज़्म में पहुँचेंगे क़मर से पहले