कौन कहता है कि मरना मिरा अच्छा न हुआ फ़िक्र दरमाँ न हुई रंज मुदावा न हुआ वाह इस नाले पे और इतनी अदू को नाज़िश बज़्म में और तो क्या हश्र भी बरपा न हुआ सैर-ए-गुलशन से रहे शाद व-लेकिन अफ़्सोस अब के मा'लूम कुछ अहवाल क़फ़स का न हुआ सो गए सुनते ही सुनते वो दिल-ए-ज़ार का हाल जब को हम समझे थे अफ़्सूँ वही अफ़्साना हुआ रब्त कुछ दाग़-ओ-जिगर का तो है चस्पाँ 'आशिक़' वर्ना इस दौर में कोई भी किसी का न हुआ