कौन कहता है तुम अदा न करो पर वफ़ा की जगह जफ़ा न करो सर्व कट जाएँगे पिसेगी हिना इस तरह बाग़ में फिरा न करो हँस रहे हैं अभी ख़ुशी में वो मेरे रोने का तज़्किरा न करो ज़ख़्म-ए-दिल पर न हो नमक-पाशी इस मज़े से तो आश्ना न करो है क़यामत तुम्हारी अटखेली हश्र ऐ जान-ए-मन बपा न करो ख़िर्मन-ए-दिल पे बर्क़ गिरती है मेरे रोने पे तुम हिंसा न करो नेमत-ए-इश्क़ है ये दाग़-ए-जिगर शुक्र-ए-हक़ के सिवा गिला न करो है शब-ए-वस्ल बे-तकल्लुफ़ हो शोख़ियाँ कहती हैं हया न करो हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-गेसू मुझ को बहर-ए-ख़ुदा रिहा न करो शौक़ कहता है ख़ुद चले जाओ मिन्नत-ए-नामा-बर किया न करो दिल लगाना बुरा है ऐ 'आजिज़' चुप रहो उस का तज़्किरा न करो