कौन सी शय में तिरा नूर नहीं किस जगह पर तिरा ज़ुहूर नहीं दिल से आती है ये सदा पैहम पास तेरे हूँ तुझ से दूर नहीं दिल-ए-वहशी ने थे क़दम चूमे इस में कोई मिरा क़ुसूर नहीं ख़ाक हो कर ग़ुबार-ए-राह बनो नख़वत-ओ-किब्र कुछ ज़रूर नहीं जल्वा दिखला दे शाह-ए-दीं मुझ को तेरे लुत्फ़-ओ-करम से दूर नहीं जल्वा-ए-नूर से जला था कोह दिल मकान-ए-ख़ुदा है तूर नहीं ऐ 'जमीला' गुनह का क्या धड़का नाम इस का मगर ग़फ़ूर नहीं