कौन सुख-चैन से है किस की पज़ीराई है तेरी दुनिया में हर इक मोड़ पे रुस्वाई है झील सी आँखें तिरी और गुलाबी तिरे होंट मेरी चाहत के ही सदक़े में ये रानाई है मैं जो चुप-चाप सा बैठा हूँ तिरी महफ़िल में ये मिरा शौक़ नहीं ज़रबत-ए-तन्हाई है घर में घुट घुट के ही मर जाते हैं बीमार ग़रीब अब शिफ़ा-ख़ाने में इस औज पे महँगाई है मैं समुंदर तो नहीं अदना सा शाइ'र हूँ मगर दरिया से बढ़ के मिरे शे'र में गहराई है जान कर भी नहीं पहचानते हैं 'शौक़ी' लोग तेरी बस्ती में अजब तर्ज़-ए-शनासाई है