क़ुव्वत-ए-जिस्म-ओ-जाँ याद आई दिल की ताब-ओ-तवाँ याद आई आज मुझे इक बात तुम्हारी मुझ से भी पिन्हाँ याद आई कल तुम हुजरा-ए-ग़म से चले मुझ को उम्र-ए-रवाँ याद आई बज़्म-ए-तरब में बात ख़ुशी की बन कर ग़म का समाँ याद आई मुझ से हुआ ये काम भी वर्ना किस को अपनी फ़ुग़ाँ याद आई अपने जुर्म-ए-सियह याद आए तेरी ख़ू-ए-अमाँ याद आई दिल के ज़ख़्म हुए फिर ताज़ा फिर वो तेग़-ए-ज़बाँ याद आई तेरी शिकायत तेरे मुँह पर कब की बात कहाँ याद आई