क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल तिरे आशिक़ ने भी पाया है क्या दिल लगा दो आग उज़्र-ए-मस्लहत को कि है बे-ज़ार इस शय से मिरा दिल जफ़ाकारी है तस्लीम-ए-सितम भी न होगा ताबा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल लगा कर आँख इस जान-ए-जहाँ से न होगा अब किसी से आश्ना दिल मिटे अफ़कार-ए-गोना-गों के झगड़े तिरे ग़म को न दे क्यूँकर दुआ दिल न पहुँचेगी कभी क्या गोश-ए-गुल तक क़फ़स से उड़ के फ़रियाद-ए-अना दिल तू अना-ए-सदाक़त है तो हरगिज़ न होगा पैरव-ए-बातिल मिरा दिल बड़ी दरगाह का साइल हूँ 'हसरत' बड़ी उम्मीद है मेरी बड़ा दिल