क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए जिसे वादे से नफ़रत हो जिसे मिलने से आर आए मिरी बे-ताबियाँ छा जाएँ या-रब उन की तमकीं पर तड़पता देख लूँ आँखों से जब मुझ को क़रार आए मिटा दूँ अपनी हस्ती ख़ाक कर दूँ अपने-आपे को मिरी बातों से गर दुश्मन के भी दिल में ग़ुबार आए इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की मज़ा हो शैख़-साहिब कह उठें बे-इख़्तियार आए ख़ुदा जाने कि वो 'बेख़ुद' से इतने बद-गुमाँ क्यूँ हैं कि हर जलसे में फ़रमाते हैं देखो होशियार आए