क़यामत हैं ये चस्पाँ जामे वाले गुलों ने जिन की ख़ातिर ख़िरक़े डाले वो काला चोर है ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार कि सौ आँखों में दिल हो तो चुरा ले नहीं उठता दिल-ए-महज़ूँ का मातम ख़ुदा ही इस मुसीबत से निकाले कहाँ तक दूर बैठे बैठे कहिए कभू तो पास हम को भी बुला ले दिला बाज़ी न कर उन गेसुओं से नहीं आसाँ खिलाने साँप काले तपिश ने दिल जिगर की मार डाला बग़ल में दुश्मन अपने हम ने पाले न महके बू-ए-गुल ऐ काश यक-चंद अभी ज़ख़्म-ए-जिगर सारे हैं आले किसे क़ैद-ए-क़फ़स में याद गुल की पड़े हैं अब तो जीने ही के लाले सताया 'मीर' ग़म-कश को किन्हों ने कि फिर अब अर्श तक जाते हैं नाले