क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना तुम्हारे हुस्न सो देखे सो इक आफ़त है ऐ पन्ना सुघड़ जितने हैं ये ये सब तुझी को प्यार करते हैं सियाने सौ है पर उन सौ की इक ही मत है ऐ पन्ना लगा जाती है अपना दाँव और मेरा बचा जाती तू अपने काम में बाँकैत और रावत है ऐ पन्ना तिरी कंचन बरन सी देह जिस की गोद में होवे उसे दुनिया के अय्याशों में क्या दौलत है ऐ पन्ना नहीं लेती हमारा नाम हम कूँ याँ तलक भूली तुझे हम और कुछ अब क्या कहें रहमत है ऐ पन्ना