ख़ाक या कहकशाँ से उठता है दर्द आख़िर कहाँ से उठता है है अजब जा-ए-अम्न क़र्या-ए-दिल हश्र सारा जहाँ से उठता है देख ऐ आह-ए-साकिनान-ए-ज़मीं इक ग़ुबार आसमाँ से उठता है पहले ये ख़ार-ओ-ख़स जलाता था शो'ला अब गुल्सिताँ से उठता है मसअला ख़ातिर-ए-परेशाँ का ख़्वाहिश-ए-राएगाँ से उठता है इक ख़ला है जो पुर नहीं होता जब कोई दरमियाँ से उठता है शाहकार-ए-सुख़न है मिस्रा-ए-'मीर' कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है