ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है हर इक तरफ़ से सदा आ रही थी याँ कोई है यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी तलाश कीजिए इस का अगर निशाँ कोई है जवार-ए-क़रिया-ए-गिर्या से आ रही थी सदा मुझे यहाँ से निकाले अगर यहाँ कोई है तलाश कर रहे हैं क़ब्र से छुपाने को तिरे जहान में हम सा भी बे-अमाँ कोई है कोई तो है जो दिनों को घुमा रहा है 'रज़ा' पस-ए-गुमाँ ही सही पर पस-ए-जहाँ कोई है