खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए तुम्हारे हाथ के हैं ये शजर लगाए हुए बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए अभी सिपाह-ए-सितम ख़ेमा-ज़न है चार तरफ़ अभी पड़े रहो ज़ंजीर-ए-दर लगाए हुए कहाँ कहाँ न गए आलम-ए-ख़याल में हम नज़र किसी के दर-ओ-बाम पर लगाए हुए वो शब को चीर के सूरज निकाल भी लाए हम आज तक हैं उम्मीद-ए-सहर लगाए हुए दिलों की आग जलाओ कि एक उम्र हुई सदा-ए-नाल-ए-दूद-ओ-शरर लगाए हुए