ख़ेमा-ज़न कौन है आख़िर ये कनार-ए-दिल पर किस का अफ़्सूँ है कि रौशन हैं इशारे दिल पर शाम-ए-एजाज़ अजब आई है तंहाई में कहकशाँ से उतर आए सितारे दिल पर लग गया था किसी रुख़्सत पे जो माबैन-ए-शबाब दाग़ उस ज़ख़्म का अब तक है हमारे दिल पर जैसे महफ़ूज़ हो तुम मेरे निहाँ जज़्बों में क्या उसी तरह मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारे दिल पर जब कि हम भी नहीं आमादा बग़ावत पे अभी कैसे उड़ते हुए आख़िर हैं शरारे दिल पर जो मिले दहर से वाबस्ता तसावीर के साथ रख लिए दर्द तो हम ने भी वो सारे दिल पर कौन महजूब है आँखों से ब-ज़ाहिर 'राशिद' किस के होने के यूँ साबित हैं नज़ारे दिल पर