ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है तिरी निगाह सलामत मुझे कमी क्या है बस इक तजल्ली-ए-रंगीं बस इक तबस्सुम-ए-नाज़ रियाज़-ए-दहर में फूलों की ज़िंदगी क्या है ख़ुदा-रसीदा सही लाख बरगुज़ीदा सही जो आदमी को न समझे वो आदमी क्या है अबस ये मश्क़-ए-रुकू-ओ-सुजूद है यारो अगर पता नहीं मफ़्हूम-ए-बंदगी क्या है कहीं ये लुत्फ़-ओ-इनायत की इब्तिदा तो नहीं तुम्हीं बताओ ये अंदाज़-ए-बरहमी क्या है दिलों के तार जो छू ले वही है शेर 'हफ़ीज़' अगर ये बात नहीं है तो शाइरी क्या है