ख़फ़ा से लग रहे हो कुछ हुआ क्या तुम्हें भी है किसी से कुछ गिला क्या झुकी नज़रें अब उठती ही नहीं हैं कोई उन्वान दिल में है छुपा क्या निगाह-ए-ख़िशमगीं लब पे तबस्सुम नियाज़-ओ-नाज़ का है सिलसिला क्या निगाहों का ये शाइस्ता तकल्लुम ख़मोशी को मिली तर्ज़-ए-अदा क्या उसी का ज़िक्र है सब की ज़बाँ पर वो ऐसा हो गया है दिलरुबा क्या ब-जुज़ तेरी तलब के इस जहाँ में हमारी आरज़ू क्या मुद्दआ' क्या जिधर देखो वही जल्वा-नुमा है यही शायद है इरफ़ान-ए-ख़ुदा क्या उमँडते ही चले आते हैं आँसू किसी ने पुर्सिश-ए-ग़म कर दिया क्या दम-ए-रुख़्सत है आओ पास बैठो दुआएँ दो हमें तुम अब दवा क्या 'तरब' साहब कहाँ बज़्म-ए-सुख़न में ग़ज़ल कहना तुम्हें भी आ गया क्या