ख़फ़ी रहा या जली आलम-ए-शुहूद में था मैं अम्र-ए-कुन से भी पहले किसी वजूद में था किसी सदा ने बरअंगेख़्ता किया मुझ को वगर्ना मैं भी इसी हल्क़ा-ए-ख़ुमूद में था मुझे शुऊ'र दिया बे'सत-ए-पयम्बर ने फिर इस के बाद मैं अल्लाह के जुनूद में था मुझे हुसैन ने ज़र्रे से माहताब किया मैं बे-निशान तमाशा-ए-हस्त-ओ-बूद में था न जिद्द-ओ-जहद-ए-मुसलसल ने सोज़-ओ-साज़-ए-हयात मिसाल-ए-शज्र ज़मीं-बोस मैं जुमूद में था अँधेरी रात में नुदरत मिली सितारे को तमाम रोज़ वो डूबा हुआ कबूद में था तलाश-ए-मंज़िल-ए-हस्ती में ख़ाक-बाज़ी की मिरा मक़ाम मगर क़िला-ए-उमूद में था मुझे क़याम के क़ाबिल किया इरादे ने मैं एक उम्र तलक हालत-ए-क़ूऊद में था वो कर्र-ओ-फ़र-ए-तख़य्युल के नाशिरान तो थे मगर हर एक नुमाइश में या नुमूद में था मैं मद्द-ओ-जज़्र-ए-तख़य्युल को उस के नाम करूँ कि जिस का ज़िक्र हमेशा मिरे दरूद में था वो तख़्त-ए-ख़ाक पे बैठा वही क़लंदर है कि जिस के सामने जिबरील भी सुजूद में था मता-ए-क़ाफ़िला-ए-इश्क़ जब लुटी 'नक़्क़ाश' वो मेरे मुल्क-ए-सितम-केश की हुदूद में था