ख़िज़ाँ का सोग या जश्न-ए-बहार करते हुए कटी है उम्र तिरा इंतिज़ार करते हुए शरफ़ ये सिर्फ़ मुक़द्दर था आइने के लिए कि देखता रहा तुझ को सिंघार करते हुए सफ़र की शाम का मंज़र लहू में डूब गया सभी मलूल थे तुझ को सवार करते हुए लहू बुझा न सका क़ातिलों की प्यास कभी थकी न शम्अ पतंगे शिकार करते हुए बनाओ आब पे इक यादगार उन की 'अज़ीम' जो ग़र्क़ हो गए दरिया को पार करते हुए