ख़िज़ाँ की शाम को ज़ख़्म-ए-बहार किस ने किया हर एक रेशा-ए-गुल रंग-बार किस ने किया ख़ुशी विसाल की सारी समेट ली तू ने फ़िराक़ लम्हों को बोलो शुमार किस ने किया हर एक शख़्स यहाँ बद-गुमान तुझ से था निगाह-ए-यार तिरा ए'तिबार किस ने किया ये मेरे घर की उदासी गवाही देगी तुझे कि तेरे हिज्र के दरिया को पार किस ने किया मता-ए-जाँ को किया ख़ाक किस ने तेरे लिए ये ख़ाक-ए-जाँ ही बताएगी प्यार किस ने किया वफ़ा में जान लुटाने के बा'द भी 'लुबना' मिरे ख़ुलूस-ए-मोहब्बत पे वार किस ने किया