ख़िज़ाँ में भी बहार-ए-जावेदाँ मालूम होती है जवानी हो तो फिर हर शय जवाँ मालूम होती है यहाँ मालूम होती है वहाँ मालूम होती है ख़लिश दिल की कहाँ है और कहाँ मालूम होती है जफ़ा उन की वफ़ा मेरी वफ़ा मेरी जफ़ा उन की मोहब्बत दास्ताँ-दर-दास्ताँ मालूम होती है असीरान-ए-क़फ़स हैं हम से पूछो क़द्र-ए-आज़ादी कि अब बिजली भी शाख़-ए-आशियाँ मालूम होती है ये माना इश्क़ में सब्र ओ सुकूँ से कुछ नहीं हासिल मगर आह-ओ-फ़ुग़ाँ भी राएगाँ मालूम होती है पयाम-ए-इश्क़ देते हैं वो जब नज़रों ही नज़रों में वो इक साअत हयात-ए-जावेदाँ मालूम होती है लताफ़त इश्क़ की है मान-ए-नज़्ज़ारा-ए-सूरत मोहब्बत ख़ुद हिजाब-ए-दरमियाँ मालूम होती है बड़ी मुश्किल से समझे हैं शहीद-ए-इश्क़ का मंसब 'सहर' अब ज़िंदगी बार-ए-गिराँ मालूम होती है