ख़िज़्र जैसा है राहबर मुझ में मुझ को दरपेश है सफ़र मुझ में कश्ती-ओ-ना-ख़ुदा बहुत ख़तरे कई तूफ़ाँ कई भँवर मुझ में ख़ून से तर-ब-तर गली-कूचे दस्त-ए-क़ातिल है ज़ोर पर मुझ में कोई तेशा-ब-दस्त फिरता है क़र्या क़र्या है बस शरर मुझ में जिस तरह से हिरन पहाड़ों पर लौट कर आता है हुनर मुझ में