ख़ैर माँगी जो आशियाने की आँधियाँ हँस पड़ीं ज़माने की मेरे ग़म को समझ सका न कोई मुझ को आदत है मुस्कुराने की दिल सा घर ढा दिया तो किस मुँह से बात करते हो घर बसाने की हुस्न की बात इश्क़ के क़िस्से बात करते हो किस ज़माने की दिल ही क़ाबू में अब नहीं मेरा ये क़यामत तिरी अदा ने की कुछ तो तूफ़ाँ की ज़द में हम आए कुछ नवाज़िश भी ना-ख़ुदा ने की मुझ को तुम याद और भी आए कोशिशें जितनी की भुलाने की वो ही 'नौशाद' फ़न का शैदाई बात करते हो किस दिवाने की