ख़ैर से ज़ीस्त का ऐ काश हो अंजाम अभी वक़्त अच्छा है ज़बाँ पर है तिरा नाम अभी हाँ लबालब तो है लबरेज़ नहीं जाम अभी ज़ब्त में है असर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम अभी वो नहीं हैं तो निगाहों में है दुनिया अंधेर कैसे रौशन थे मुनव्वर थे दर-ओ-बाम अभी यही समझेंगे मोहब्बत को हयात-ए-जावेद जो समझते हैं उसे मौत का पैग़ाम अभी बे-नियाज़ी-ए-तमन्ना कि है इक जन्नत-ए-इशक़ दिल ने पाया नहीं फ़ितरत से ये इनआ'म अभी ता-ब-मेराज-ए-यक़ीं देखिए कब तक पहुँचूँ दिल की गहराइयों में हैं बहुत औहाम अभी आज़िम-ए-बारगह-ए-दोस्त था 'मानी' लेकिन क्या पहुँचता कि है सर बर-दर-ए-असनाम अभी