ख़िर्क़ा-पोशी में ख़ुद-नुमाई है हाथ बस कासा-ए-गदाई है बोरिया भी नहीं उसे दरकार जिस के तईं शौक़-ए-बे-रियाई है गुल सब हँसते हैं बज़्म-ए-गुलशन में इश्क़-ए-बुलबुल मगर रियाई है जल्द जाती है आसमाँ ऊपर आह मेरी अजब हवाई है शम्-ए-मीना के नूर सूँ साक़ी महफ़िल दिल में रौशनाई है हर घड़ी देखता है दर्पन कूँ शोख़ में तर्ज़-ए-ख़ुद-नुमाई है जब सूँ देखा हूँ उस की ज़ुल्फ़-ए-दराज़ तब सूँ मुझ फ़िक्र में रसाई है काँ यू देखा है ख़्वाब में मख़मल तुझ कफ़-ए-पा में जो सफ़ाई है क्यूँ न हुए माह-ए-नौ मिसाल-ए-अज़ीज़ जिस मने रस्म-ए-कम-नुमाई है दस्त-ए-गुल-रू में पहुँचने 'दाऊद' काग़ज़-ए-ख़त मिरा हिनाई है