ख़ैरात सिर्फ़ इतनी मिली है हयात से पानी की बूँद जैसे अता हो फ़ुरात से शबनम इसी जुनूँ में अज़ल से है सीना-कूब ख़ुर्शीद किस मक़ाम पे मिलता है रात से नागाह इश्क़ वक़्त से आगे निकल गया अंदाज़ा कर रही है ख़िरद वाक़िआत से सू-ए-अदब न ठहरे तो दें कोई मशवरा हम मुतमइन नहीं हैं तिरी काएनात से साकित रहें तो हम ही ठहरते हैं बा-क़ुसूर बोलें तो बात बढ़ती है छोटी सी बात से आसाँ-पसंदियों से इजाज़त तलब करो रस्ता भरा हुआ है 'अदम' मुश्किलात से