ख़िरद के जुमला दसातीर से मुकरते हुए फिर आज दिल से लगा बैठे नाम बरते हुए सदाएँ दो कि कोई कारवान-ए-ग़म ठहरे हमें तो रास न आएँगे दिन सँवरते हुए जो महव-ए-रक़्स रहे रंग-ओ-नूर के चौ गिर्द बिखर गए हैं तिरी लौ का तौफ़ करते हुए वो तख़्त-ए-जाँ था जहाँ तेरी ताज-पोशी की सो किस जिगर से तुझे देख लूँ उतरते हुए हुआ था हुक्म-ए-सफ़र दिल मगर था रू-गर्दां सो रह में बैठ रहे दिल पे दोश धरते हुए तुम्हारे नाम के हिज्जे सँवार कर उस में अब अपना नाम मिलाएँगे रंग भरते हुए जुनूँ पे ता'न करें पारसाई के वाइज़ हवस के कूचा-ए-रंगीन से गुज़रते हुए सहर क़रीब हुई आओ आँख में भर लें ये पारा पारा तमन्नाएँ ख़्वाब मरते हुए