ख़िरद की छाँव में नींद आ रही है कहाँ ग़ैरत जुनूँ की खो गई है मुझे तेरे तसव्वुर ने सँभाला जहाँ भी गर्दिश-ए-दौराँ मिली है हुई मुद्दत जला था आशियाना निगाहों में अभी तक रौशनी है जहाँ वो चलते चलते रुक गए हैं वहाँ गर्दिश फ़लक की थम गई है मिरे अश्कों की ताबानी से हमदम शब-ए-फ़ुर्क़त की ज़ुल्मत काँपती है ये मेरा ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा सलामत हर इक सूरत में सूरत आप की है कहाँ जाऊँ निकल कर मय-कदे से रह-ए-दैर-ओ-हरम में तीरगी है सँभल कर पाँव रख ऐ वहशत-ए-दिल वफ़ा की रहगुज़र काँटों भरी है हद-ए-इदराक में दम तोड़ना क्या जुनून-ए-इश्क़ में ज़िंदा-दिली है ग़म-ए-इंसाँ ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-दिल 'हयात' अब कश्मकश में ज़िंदगी है