ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है मैं ने इक शख़्स से उजरत पे मोहब्बत की है ख़ुद को धुत्कार दिया मैं ने तो इस दुनिया ने मेरी औक़ात से बढ़ कर मिरी इज़्ज़त की है जी में आता है मिरी मुझ से मुलाक़ात न हो बात मिलने की नहीं बात तबीअत की है अब भी थोड़ी सी मिरे दिल में पड़ी है शायद ज़र्द सी धूप जो दीवार से रुख़्सत की है आज जी भर के तुझे देखा तो महसूस हुआ आँख ने सूरा-ए-यूसुफ़ की तिलावत की है हाल पूछा है मिरा पोंछे हैं आँसू मेरे शुक्रिया तुम ने मिरे दर्द में शिरकत की है