ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना चंदे इक और है गर्दिश में सितारा अपना दिल ओ दीन व ख़िरद ओ सब्र कुजा कू आराम घर लुटा हम ने दिया इश्क़ में सारा अपना बोली सय्याद से बुलबुल कि न कर गुल से जुदा तख़्ता-ए-बाग़ है ये तख़्त-ए-हज़ारा अपना सैर की हम ने जो कल महफ़िल-ए-ख़ामोशाँ की न तो बेगाना ही बोला न पुकारा अपना मिस्ल-ए-नय हम ने तो फ़रियाद बहुत की लेकिन कोई हमदम न हुआ आह हमारा अपना दिल हुआ चाह-ए-ज़क़न ही में ग़रीक़-ए-रहमत इस में ग़व्वास-ए-नज़र गरचे उतारा अपना खुल गया उक़्दा-ए-हस्ती-ओ-अदम मिस्ल-ए-हबाब लब-ए-दरिया पे हुआ जब कि गुज़ारा अपना पैरहन उस को हुआ ख़िलअत-ए-शाही कि 'नसीर' जिस ने ये पैरहन-ए-ख़ाक उतारा अपना