वो जो ए'तिबार-ए-जमाल थे वो कहाँ गए वो जो आप अपनी मिसाल थे वो कहाँ गए कभी हर तरफ़ कोई दिलकशी सी मुहीत थी उसी दश्त में जो ग़ज़ाल थे वो कहाँ गए कहीं एक पल को भी तू नज़र नहीं आ रहा ग़म-ए-दिल तिरे मह-ओ-साल थे वो कहाँ गए वो जो ख़्वाब ले के चले थे हम वो कहाँ गया वो जो उस के ग़म में निढाल थे वो कहाँ गए कभी पहरों उस का बस इक उसी का ख़याल था वो जो हिज्र थे जो विसाल थे वो कहाँ गए कभी पहले जब वो मिला था वैसा नहीं रहा कई रंग उस में कमाल थे वो कहाँ गए ये जो लोग मेरे क़रीब हैं ये कहाँ के हैं वो जो हुस्न-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल थे वो कहाँ गए