ख़लिश हो जिस में वो अरमाँ तलाश करता हूँ न निकले दिल से जो पैकाँ तलाश करता हूँ किसी की काकुल-ए-पेचाँ तलाश करता हूँ चमन में सुम्बुल-ओ-रैहाँ तलाश करता हूँ न जिस में दौर-ए-ख़िज़ाँ हो न आशियाना जले मैं कोई ऐसा गुलिस्ताँ तलाश करता हूँ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है हद्द-ए-जुनूँ से बढ़ जाना तरीक़-ए-चाक-गरीबाँ तलाश करता हूँ मैं इस तलाश के क़ुर्बां फ़साना-ए-दिल को मैं रोज़ इक नया उनवाँ तलाश करता हूँ न कोई शम्अ' है रौशन न रक़्स-ए-परवाना सुकून-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ तलाश करता हूँ जो हादसात की आँधी में भी रहे रौशन मैं ऐसी शम-ए-फ़रोज़ाँ तलाश करता हूँ कभी कलीम ने देखा था तूर पर जल्वा वही मैं जल्वा-ए-जानाँ तलाश करता हूँ वो शह-रग से भी नज़दीक 'शम्स' रहता है जिसे ब-कोह-ओ-बयाबाँ तलाश करता हूँ