ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई लीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई आप ही मरकज़-ए-निगाह रहे जाने को चार-सू निगाह गई सामने बे-नक़ाब बैठे हैं वक़अत-ए-हुस्न-ए-मेहर-ओ-माह गई उस ने नज़रें उठा के देख लिया इश्क़ की जुरअत-ए-निगाह गई इंतिहा-ए-जुनूँ मुबारकबाद पुर्सिश-ए-हाल गाह गाह गई मर मिटे जल्द-बाज़ परवाने अपनी सी शम्अ' तो निबाह गई दिल में अज़्म-ए-हरम सही लेकिन उन के कूचे को गर ये राह गई